लवणभास्कर चुरणं (Lavan Bhaskar churn)

लवणभास्कर चुरणं (Lavan Bhaskar churn)-


लवणभास्कर चूर्ण सबसे अधिक ,भूख न लगने वाले रोगियों के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले आयुर्वेदिक ओषधि है , जो आमाशय के अनेक रोगो में भी बहुत लाभकारी होती है।
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घाटक द्रव्य -

  1. मरिच -५० ग्राम
  2. जीरा सफेद -५० ग्राम
  3. पिप्ली बड़ी -१०० ग्राम
  4. पिप्लीमूल            -१०० ग्राम 
  5. धनियां -१०० ग्राम
  6. कालाजीरा -१०० ग्राम
  7. शुण्ठी -५० ग्राम
  8. दालचीनी -२५ ग्राम
  9. बड़ी इलायची -२५ ग्राम
  10. सेेन्धव लवण -१०० ग्राम
  11. विडलवण -१०० ग्राम
  12. तालीशपत्र -१०० ग्राम
  13. सामुद्र लवण -४०० ग्राम
  14. अनारदाना -२०० ग्राम
  15. अम्लवेतम -१०० ग्राम
  16. नागकेशर -१०० ग्राम
  17. सौवृचल लवण -२५० ग्राम

निर्माण-विधि-

१ से १७ सं० तक की सभी औषधियों को लेकर कूटकर पीसकर सूक्ष्म वस्त्र से 2- 3 बार छान कर चूर्ण बना कर शीशे के जार में सुरक्षित रख लें । और उपयोग के अनुसार ले।

मात्रा-

२ से ४ माशा (ग्राम ) तक ।

अनुपान -

उष्णोदक , निम्बुस्वरस, मस्तु, तक्र, शुक्त, काञ्जी एवं सुरा का अनुपान का प्रयोग लवणभास्कर चूर्ण  खाने के बाद करना चाहिए , इसको उष्ण पानी के साथ मात्रा अनुसार प्रयोग करना चाहिए। 

उपयोग -

लवणभास्कर चूर्ण मन्दाग्नि, अरशं, ग्रहणी, कुष्ट, भगन्दर, प्लीहरोग, सभी प्रकार के उदर रोग, ह्रदयरोग , अश्मरी , श्वास , कास, क्रिमी , प्रमेह और पाण्डु रोग का नाश करता है।
लवणभास्कर चूर्ण में कुल मिलाकर अठारा प्रकार की ओषदि होती है जो हमने ऊपर लिखी है इन्हे अपने अपने प्रमाण के अनुसार एकत्रित करके इनको महीन पीसकर पावडर बनाकर कपडे से छानकर रख लिया जाता है
लवणभास्कर चूर्ण मंदाग्नि में बहुत लाभकारी होता है या जिस व्यक्ति को भूख न लगती हो या कम लगती हो इसके अतरिक्त यह गुल्म , क्षय , विबन्ध या जिन व्यक्ति को पैट दर्द , अविकार , उदरशूल , आमविकार होता है
या जिन लोगो को कब्ज होता है उनके लिए यह बहुत लाभकारी औषधि है।
B.P. low होने वाले रोगियों के लिए यह बहुत लाभकारी होती है। इसके उपयोग की मात्रा १ से ३ ग्राम बताई गयी है ,रोगी को अपने बल के अनुसार इसे लेना चाहिए इसका उपयोग दिन में २ से ३ बार करना चाहिए। जिनका BP high रहता है उन लोगो को यह अलप मात्रा में प्रयोग में लानी चाहिए क्योकि इसके प्रयोग से BP अधिक High हो सकता है।
यह पाचन तंत्र को सुधरता है तथा पाचन शक्ति को बढ़ता है जिससे भूख न लगने की समस्या नहीं होती। जितने भी पेट के रोग है उनमे इसका प्रयोग करना लाभकारी होता है
इसका प्रयोग दिन में २ बार खाने के बाद पानी के साथ या छाज के साथ भी कर सकते है। इसकी मात्रा लगभग आधा चमच लेनी चाहिए, खाने के १ घंटा बाद इसका उपयोग करना लाभकारी होता है इससे पेट के सभी समस्या का निवारण होता है।
इसका प्रयोग ह्रदय रोगो में भी किया जाता है। इसके अलावा इसे सभी श्वास रोग कास रोग तथा जिसके पेट में कीड़े होते है उसमे भी यह लाभकारी होता है। प्रमेह रोग में भी इसका उपयोग होता है जिससे रोगी आरोग्य हो जाता है। लवणभास्कर चूर्ण पाण्डु रोग नाशक भी है , इसका सामान्य प्रयोग उदर रोगो में ज्यादा किया जाता है , क्योकि यह आयुर्वेदिक ओषधि है जिसके कारन इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं होता इसे कोई भी प्रयोग में ला सकता है इसके प्रभाव लाभकारी होते है। जेसे की आयुर्वेद सस्त्रो में भी लिखा है किसी भी चीज का अत्याधिक प्रयोग हानिकारक होता है इसलिए इसका मात्रा से अधिक या अपने बल से अधिक प्रयोग नही करना चाहिए , अत्यधिक प्रयोग से अन्य रोग उत्पन होकर रोगी को पीड़ित करते है।

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