राजयक्षमा/Tuberculosis

राजयक्षमा(Tuberculosis)

rajyakshma-tuberculosis-disease

परिचय -

 राजा का रोग यह रोग सबसे पहले नक्छत्रो के राजा चन्द्रमा को हुआ था जिसके कारण इसका नाम राजयक्षमा पड़ा।  इस रोग को रोगराट तथा रोग समुह भी कहते है क्योकी इस रोग का पर्ति एक लक्षण के रोग के समान गम्भीर है।  यह अनेक रोगो का अनुगामी तथा बहुत से रोगो का पुरगामी होता है।  इस व्याधि या रोग में ओज क्षय मुख्य रूप से मिलता है।  इस व्याधि को शोष तथा क्षय रोग भी कहते है और जिसके द्वारा शरीर में क्षीणरा उत्पन होते है उसे क्षय रोग कहते है।  आधुनिक मतानुसार इसे consumption और pulmonary tuberculosis  भी कहते है। 

राजयक्ष्मा का निदान - कारण 

शास्त्रों में राजयक्ष्मा के मुख्य रूप से निम्न चार कारण बातये गए है। जो राजयक्ष्मा के विकृष्ट निदान है। 

  1. वेगधारण
  2.  क्षय 
  3. साहस 
  4. विषमाशन 

सन्निकृष्ट निदान में कास, वातश्लेष्मक , ज्वर , मधुमेह ,प्रसूति रोग , प्रतिश्याय , शरीर कृशता आदी है। 
साहस निदानो में अतिमैथुन , अप्रकर्तिक मैथुन , बालविवाह , प्रसव के समय संक्रमण , धूम्रपान आड़ी है। 

राजयक्ष्मा की सम्प्राप्ति -

राजयक्ष्मा की सम्प्राप्ति दो प्रकार की बताई गयी है 

  • सामान्य सम्प्राप्ति 
  • विशिष्ट समपतपति 

सामान्य सम्प्राप्ति -

ऊपर दिए गए निदानो का अत्यधिक सेवन करने से अग्नि विषम हो जाती है जिसके कारण धातुओं का उचित रूप से परिपाक नही हो पाता है  अतः इसके मलभूत कफ के वृद्धि हो जाती है।  कफ की वृद्धि के कारण दोषो के मार्ग का अवरोध हो जाता है जिसके कारण वात दोष का प्रकोप हो जाता है फलस्व्रूप धातुओं का क्षय शुरू हो जाता है अतः राजयक्षमा रोग की उत्पति हो जाती है। 

विशिष्ट सम्प्राप्ति -

विशिष्ट सम्प्राप्ति चार प्रकार के बताई गयी है। 

  1. वेगवरोधजन्य यक्ष्मा की सम्प्राप्ति 
  2. क्षयजन्य राजयक्ष्मा की सम्प्राप्ति 
  3. साहासजन्य राजयक्ष्मा के सम्प्राप्ति 
  4. विषमाशनजन्य राजयक्ष्मा के सम्प्राप्ति 

वेगवरोधजन्य यक्ष्मा की सम्प्राप्ति -

वेगधारण निदान के कारण , जब कोई व्यक्ति लज्जावश या घ्रणावश अथवा भयवश अधारणीय वेगो अर्थात मुख्यत वात , मूत्र , पुरीष के वेगो को धारण कर लेता है या रोकता है तब वात कुपित हो जाता है जो पित्त तथा कफ के साथ शरीर में उर्ध्व ,अध तथा तिर्यक के प्रदेश में गमन करती हुई राजयक्ष्मा रोग को उत्पन करती है। 

क्षयजन्य राजयक्ष्मा की सम्प्राप्ति -

क्षय निदान के कारण ,ईर्ष्या , उत्क्रष्ठ , भय ,त्रास , क्रोध , शोक आदि के कारण जिन व्यक्तियों में तथा जो व्यक्ति अधिक व्यायाम , अधिक उपवास करते है उनके शुक्र तथा ओज की होने हो जाती है जिसके कारण वात दोष प्रकुपित हो जाता है तथा प्रकुपित वायु कफ तथा पित्त के साथ शारीरिक प्रदेश में गमन करती है तथा राजयक्ष्मा रोग को उत्पन्न करती है। 

आयुर्वेद में क्षय की उत्पति दो प्रकार से वर्णित की गयी है -


  • अनुलोम क्षय 
  • प्रतिलोम क्षय 

अनुलोम क्षय -

ऊपर दिए गए कारणों से तथा रास के क्षय होने से अन्य धातुओं का पोषण नही होता है जिसके कारण अनुलोम क्षयजन्य राजयक्ष्मा रोग की उत्पति होती है। 

प्रतिलोम क्षय -

शुक्र का अत्यधिक क्षय होने से वात प्रकुपित होकर पूर्णर्ती धातुओं का क्षय होने लगता है।  प्रतिलोम क्रम से धरुनाश होने के कारण इस प्रकार से उत्पन क्षय रोग प्रतिलोम क्षय जन्य राजयक्ष्मा कहा जाता है। 

साहसजन्य राजयक्ष्मा सम्प्राप्ति -

अधिक शक्तिशाली पुरुष से युद्ध करने से , उच्च स्वर से ज्यादा देर तक अध्ययन करने से , अधिक भार उठाने से , शक्ति से आधिक पेडल चलने से मनुष्य का उर प्रदेश क्षय हो जाता है तथा वात प्रकुपित हो जाता है जो अपने साथ कफ तथा पित को उभरकर शरीर प्रदेश में गमन करता है जिसके कारण राजयक्ष्मा की उत्पति होती है। 

विषमाशजन्य राजयक्ष्मा की सम्प्राप्ति -

अनेक प्रकार के अन्नपानो को विषम रूप से सेवन करने वाले व्यक्तियों के शरीर में कुपित त्रिदोष भयंकर रोगो को उत्पन करते है।  विषम हुए त्रिदोष रक्तवाहिनी आदि स्रोतसो का अवरोध करते है जिससे राजयक्ष्मा रोग उत्पन हो जाता है। 
साहस तथा क्षय से प्रत्यक्ष धायुक्ष्य होता है तथा वेगधारण एवं वेशमाशन से स्रोतावरोध पूर्वक धातुक्ष्य होता है।  इसके निदानो से व्याधिक्षमत्व (immunity) का ह्रास होता है जिससे रोग जल्दी उत्पन होता है तथा साथ में उपसर्ग हो जाने पर राजयक्ष्मा रोग उत्पन हो जाता है। 

राजयक्ष्मा के सम्प्राप्ति घटक -


  • दोष - वात तथा कफ प्रधान त्रिदोष 
  • दुष्य - समस्त धातुए दुषित हो जाती है 
  • स्रोतस - प्रणवह स्रोतस, रसवाह , रक्तवाह स्रोतस 
  • अधिष्ठान - उर प्रदेश तथा सम्पूर्ण शरीर 
  • सवरूप - दारुण तथा चिरकारी 
  • साध्यसाधयता - कृच्छसाधय 
  • आशय - आमाशय , पक्वाशय 

राजयक्ष्मा के भेद -

निदान तथा लक्षणों के आधार पर राजयक्ष्मा के निम्न भेद किये गए है -

निदानो के आधार पर इनके चार भेद माने गए है। 

  1. साहसजंय 
  2. धातुक्षयजन्य 
  3. वेगसंधारणजन्य 
  4. विषमशनजन्य 

लक्षणों के आधार पार -

लक्षणों के आधार पर रजयक्ष्मा के तीन भेद मने गए है। 

  1. त्रिरूप राजयक्ष्मा 
  2. षड़रूप राजयक्ष्मा 
  3. एकादशरूप राजयक्ष्मा 

एकविध राजयक्ष्मा-

राजयक्ष्मा एक ही प्रकार का है जो त्रिदोषज होता है।
एवं रोगसमूह है।
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लक्षण-

भेदानुसार राजयक्ष्मा के लक्षण निम्न हैं-

1. त्रिरूप राजयक्ष्मा के लक्षण'-


त्रिरूप राजयक्ष्मा के लक्षण ही सामान्य लक्षण हैं-
१. अंस तथा पार्श्व में वेदना (Pain in chest and shoulder)
२. हस्तपाद में सताप (Burning sensation in hands and feet )
३. सर्वाङ्ग में ज्वर होना (Fever)

आचार्य भोज ने त्रिरूप राजयक्ष्मा के निम्न लक्षण बताये हैं-

२. ज्वर (Fever)
१. कास (Cough)
३. रक्तपित्त (Haemoptysis)

2. षड्रूप राजयक्ष्मा के लक्षण-


आचार्य चरक ने राजयक्ष्मा के निम्न बताये हैं-

  • कास (Cough)
  • पार्श्वशूल (Chest pain)
  • अतिसार (Diarrhoea)
  • ज्वर (Fever)
  • स्वरभेद (Hoarseness of voice)
  • अरुचि (Anorexia)

आचार्य सुश्रुत ने राजयक्ष्मा के निम्न के निम्न षदरूप माने हैं-



  • भक्तद्वेष (Anorexia)
  • ज्वर (Fever)
  • श्वास (Dyopnoea)
  • कास (Cough).
  • शोणित दर्शन (Haemoptysis)
  • स्वरभेद (Hoarseness of voice)

3. एकादश रूप राजयक्ष्मा के लक्षण-

आचार्य चरक तथा आचार्य सुश्रुत ने राजयक्ष्मा के निम्न एकादश लक्षण वर्णित किये हैं-
  1. कास (Cough)
  2. अंसताप (Pain of shoulder)
  3. स्वरभेद (Hoarseness of voice)
  4. ज्वर (Fever)
  5. पाश्श्वशूल (chest pain )
  6. शिर:शूल (Headache)
  7. रक्तवमन (Haematemesis)
  8. श्लेष्म छ्दि (Mucoi sputum vomiting)
  9. श्वास (Dyspnoea)
  10. अतिसार (Diarrhoea)
  11. अरुचि (Anorexia)

4. साहसजन्य यक्ष्मा के लक्षण-


आचार्य चरक ने साहसजन्य राजयक्ष्मा के निम्न एकादश लक्षण बताये हैं-
  1. शिर: शूल (Headache)
  2. कास (Cough)
  3. अरुचि (Anorexia)
  4. अतिसार (Diarrhoea)
  5. कण्ठोध्वंस (Apnoea)
  6. स्वरभेद (Hoarseness of voice)
  7. पार्श्वशूल (Pain in costal region )
  8. जृम्भा (Yawning)
  9. उर:शूल
  10. ज्वर (Fever)
  11. रक्तष्ठीवन

5. वेगसंधारणजन्य राजयक्ष्मा के लक्षण-

  1. प्रतिश्याय (Rhinitis)
  2. स्वरभेद (Hoarseness of voice)
  3. अरोचक ( Anorexia)
  4. कास (Cough)
  5. पार्श्वशूल (Costal pain )
  6. शिर:शूल (Headache)
  7. अंसावमर्द (Shoulder pain)
  8. ज्वर (Fever)
  9. अंगमर्द (Bodyache)
  10. अतिसार (Diarrhoea)
  11. वमन (Vomiting)

5. धातुक्षय जन्य यक्ष्मा के लक्षण.



  1. प्रतिश्याय (Rhinitis)
  2. ज्वर (Fever)
  3. अंगमर्द (Bodyache)
  4. कास (Cough)
  5. शिरोरूजा (Headache)
  6. अतिसार (Diarrhoea)
  7. श्वास (Dyspnoea)
  8. पार्श्वशूल (Costal pain)
  9. अरुचि (Anorexia)
  10. स्वरक्षय (Loss of voice)
  11. अंसताप (Shoulder pain)

6. विषमाशन जन्य यक्ष्मा के लक्षण'-

  1. प्रतिश्याय (Rhinitis)
  2. प्रसेक (Excessive salivation)
  3. कास (Cough)
  4. वमन (Vomiting)
  5. अरोचक (Anorexia)
  6. ज्वर (Fever)
  7. अंसाभिताप (Pain in shoulder region)
  8. रक्तष्ठीवन (Haemoptysis)
  9. पाश्श्वशूल (Chest pain)
  10. शिर:शूल (Headache)
  11. स्वरभेद (Hoarseness of voice)

साध्यासाध्यता-

आचार्य चरक मतानुसार बल तथा मांस क्षीण हो जाने पर यक्ष्मा रोगी असाध्य
हो जाता है।
आचार्य सुश्रुत ने चिकित्सा (साध्य) तथा वर्ज्य (असाध्य) यक्ष्मा रोगी के निम्न
लक्षण वर्णित किये हैं-

1. साध्य यक्ष्मा रोगी के लक्षण

  1. ज्वर अनुबन्ध रहित (Afebrile)
  2. शारीरिक तथा मानसिक बलयुक्त (Good Health)
  3. क्रियासह (Able to tolerate therapeutic procedures)
  4. आत्मवान् (संयमी) (Self disciplined)
  5. दीप्ताग्नि (Good digestion)
  6. मांसक्षय रहित (Non-emaciated)

2. असाध्य यक्ष्मा रोगी के लक्षण

  1. श्वेत नेत्रता (Severe anaemic patient)
  2. पर्याप्त भोजन करने पर भी जिसका शरीर क्षीण होता हो (Progressive weakness inspite of good appetite)
  3. अण्डकोष तथा उदर पर शोथ
  4. अन्न द्वेष (Anorexia)
  5. ऊर्ध्वश्वास पीड़ित (Severe dyspnoea)
  6. मूत्रकृच्छ् (Oliguria)

According to modern

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Pulmonary Tuberculosis

Definition-


Tuberculosis is caused by infection with Mycobacterium tuberculosis. It is a deadly disorder characterised by fever, night sweats, weight loss etc.

Aetiology-


The causative organism is Mycobocterium tuberculosis

Risk factors of Tuberculosis-

1. Close contact with sputum smear positive individuals.
2. Ineffective control programmes.
3. Drug resistance
4. Environmental factors that lower resistance like poverty, malnutrition and overcrowded housing.
5. Personal factors smoking, alcoholism, drug addiction, corticosteroid therapy.
6. Positive family history.
7. HIV injection < 1 year previously, Diabetes mellitus, Cirrhosis of Liver, Pneumoconiosis etc.

Clinical Features-

1. Fever is usually intermittent and has an insidious onset.
2. Cough and wheezing.
4. Anorexia
3. Haemoptysis
5. Weight loss
7. Pleuritic chest pain
9. Tachycardia
6. Night sweats
8. Breathlessness

Investigations-

1. X-ray chest PA view.
2. Sputum culture for Acid fast bacilli.
3. Tuberculin test (montoux test)
4. Complete blood count
5. Erythrocyte sedimentation rate.

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